pH के सामान्य जीवन में उपयोग बताइए।
हमारे सामान्य जीवन (दैनिक जीवन) में pH के उपयोग निम्नलिखित हैं
उदर में अम्लता- हमारे पाचन तंत्र में pH का बहुत महत्त्व होता है। हमारे उदर के जठर रस में हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (HCl) होता है। यह उदर को हानि पहुँचाए बिना भोजन के पाचन में सहायक होता है। उदर में अम्लता की स्थिति में, उदर अत्यधिक मात्रा में अम्ल उत्पन्न करता है, जिसके कारण उदर में दर्द एवं जलन का अनुभव होता है। इसके लिए ऐन्टैसिड का उपयोग किया जाता है। यह ऐन्टैसिड अम्ल की आधिक्य मात्रा को उदासीन कर देता है। इसके लिए मैग्नीशियम हाइड्रॉक्साइड (मिल्क ऑफ मैगनीशिया) [Mg(OH)2] जैसे दुर्बल क्षारकों को उपयोग किया जाता है।
दंत क्षय- मुख की pH साधारणतया 6.5 के करीब होती है। खाना खाने के पश्चात् मुख में उपस्थित बैक्टीरिया दाँतों में लगे अवशिष्ट भोजन (शर्करा एवं खाद्य पदार्थ) से क्रिया करके अम्ल उत्पन्न करते हैं, जो कि मुख की pH कम कर देते हैं। pH का मान 5.5 से कम होने पर दाँतों का इनैमल, जो कि कैल्सियम फास्फेट का बना होता है, का क्षय होने लग जाता है। अतः भोजन के पश्चात् दंतमंजन या क्षारीय विलयन से मुख की सफाई अवश्य करनी चाहिए, जिससे अम्ल की आधिक्य मात्रा उदासीन हो जाती है, इससे दंतक्षय पर नियंत्रण पाया जा सकता है।
कीटों का डंक- मधुमक्खी, चींटी तथा मकोड़े जैसे कीटों के डंक अम्ल स्रावित करते हैं, जो हमारी त्वचा के सम्पर्क में आता है। जिसके कारण ही त्वचा पर जलन तथा दर्द होता है। दुर्बल क्षारकीय लवणों जैसे सोडियम हाइड्रोजन कार्बोनेट (NaHCO3) का प्रयोग उस स्थान पर करने पर अम्ल का प्रभाव नष्ट हो जाता है।
अम्ल वर्षा- वर्षा के जल को सामान्यतः शुद्ध माना जाता है लेकिन जब वर्षा के जल की pH 5.6 से कम हो जाती है तो इसे अम्लीय वर्षा कहते हैं। इस वर्षा जल से नदी तथा खेतों की मिट्टी प्रभावित होती है, जिससे फसलों, जीवों तथा पारिस्थितिक तंत्र को नुकसान होता है। अतः प्रदूषकों को नियंत्रित करके अम्ल वर्षा को कम किया जा सकता है।
मृदा की pH- अच्छी उपज के लिए पौधों को एक विशिष्ट pH की आवश्यकता होती है। अतः विभिन्न स्थानों की मिट्टी की pH ज्ञात करके उसमें बोई जाने वाली फसलों का चयन किया जा सकता है तथा आवश्यकता अनुसार उसका उपचार किया जाता है। जब मिट्टी अधिक अम्लीय होती है तो उसमें चूना (CaO) मिलाया जाता है तथा मिट्टी के क्षारीय होने पर उसमें कोई अम्लीय पदार्थ मिलाकर उचित pH पर लाया जाता है। pH के अनुसार ही उपयुक्त उर्वरक का प्रयोग किया जाता है, जिससे अच्छी फसल प्राप्त होती है।